Monday, September 16, 2013

यादें तेरे पास रहेंगी



बचपन के दिन भी बड़े हसीं थे,
जब सर्दियों के दिन में,
धुप की चादर ओढ़े पूरी,
दोपहर यूँ ही,
अनमने से गुजार देते थे.

दौड़े चले जाते थे गेंद की चाह में,
कभी इधर कभी उधर,
पंछी की मानिंद उड़ते फिरते थे,
नीले गगन में,
कभी इस गली कभी उस गली,

लगे रहते थे दोस्तों के जमघट,
नीली छतरी के नीचे,
हमारी छतों के ऊपर,
और गूंजती रहती थी,
हंसी की आवाजें,
हमेशा कानो में हमारे,

वो दिन शायद अब न आये,
शायद फिर वो जाड़े की दोपहर,
अब ना पाए,
शायद छतों पे दोस्तों के जमघट,
फिर कभी मयस्सर ना हो,

पर ये सुहानी यादें,
हमेशा साथ रहेंगी,

दिल को हमेशा,
रिझांति रहेंगी,
बताती रहेंगी,

की कितने भी तुम बढ़ जाओ,
कितने भी तुम आगे जाओ,

वक़्त जो गुजरा वही रहेगा,
बचपन तेरा वही रहेगा,
माँ का आँचल वही रहेगा,

अंत तक साथ तेरे वही रहेगी,
तेरी यादें तेरे पास रहेंगी..

||साकेत श्रीवास्तव||
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