तुझे ढूँढते ढूँढते अरसा गुजर गया,
गर्द चढ़ी किताबों की तरह,
जब यादों पर से,
धुंधलेपन को हटाया,
तो जाना,
की तुझे ढूँढने में,
मेरे जिंदगी का हर,
लम्हा गुजर गया,
कई बार तेरा पीछा किया है,
उनींदी आखों के सपनों में,
जहाँ के इस छोर से,
अनंत के उस मोड़ तक,
पर इस दौड़ में,
यूँ तो सब मिल गया,
बस एक तुझे,
देखे ज़माना गुजर गया,
हाँ एक तस्वीर है तेरी मेरे पास,
कागज़ में उकेरी,
कुछ धुंधली सी तकदीर,
है मेरे पास,
कभी जब बहुत बोझिल,
हो जाता है ये अकेला सा मन मेरा,
और ये खामोश सी शाम,
उदासी का शबब ओढ़ लेती है,
जब दूर घरों से,
लोगो के खिलखिलाने की आवाज पड़,
जाती है कानो में, तो लगता है
तेरे साथ मेरा तकदीर गुजर गया,
हाँ तू शायद नहीं आएगी,
फिर कभी मेरी तकदीर बनाने,
और शायद नहीं गुजरू मैं भी,
बसंत की बागवानी से,
पर एक ख़ुशी हर बार मेरा दामन,
थामेगी,
की कुछ पल और वक़्त ही सही,
तेरे साथ मेरा एक लम्हा गुजर गया,
मौत की कहानी लिखने में,
जिंदगी बशर हो गयी,
तू मिला भी नहीं इन यादों के बीच,
और ये शाम यूँ ही बेवजह,
सेहर हो गयी,
जब कभी जिंदगी के इस मोड़,
से, पलट के देखता हूँ,
तो नजर आता है, बस एक तेरा चेहरा,
थोडा धुंधला थोडा मुस्कराता,
मेरी जिंदगी को,
जीवन बनता,
नजर आ जाता है,
इन गर्द पड़ी यादों के पार,
और देख बदनसीबी,
इस कमबख्त तकदीर की,
तुझे ही,
ढूँढते ढूँढते अरसा गुजर गया.
||साकेत श्रीवास्तव||
गर्द चढ़ी किताबों की तरह,
जब यादों पर से,
धुंधलेपन को हटाया,
तो जाना,
की तुझे ढूँढने में,
मेरे जिंदगी का हर,
लम्हा गुजर गया,
कई बार तेरा पीछा किया है,
उनींदी आखों के सपनों में,
जहाँ के इस छोर से,
अनंत के उस मोड़ तक,
पर इस दौड़ में,
यूँ तो सब मिल गया,
बस एक तुझे,
देखे ज़माना गुजर गया,
हाँ एक तस्वीर है तेरी मेरे पास,
कागज़ में उकेरी,
कुछ धुंधली सी तकदीर,
है मेरे पास,
कभी जब बहुत बोझिल,
हो जाता है ये अकेला सा मन मेरा,
और ये खामोश सी शाम,
उदासी का शबब ओढ़ लेती है,
जब दूर घरों से,
लोगो के खिलखिलाने की आवाज पड़,
जाती है कानो में, तो लगता है
तेरे साथ मेरा तकदीर गुजर गया,
हाँ तू शायद नहीं आएगी,
फिर कभी मेरी तकदीर बनाने,
और शायद नहीं गुजरू मैं भी,
बसंत की बागवानी से,
पर एक ख़ुशी हर बार मेरा दामन,
थामेगी,
की कुछ पल और वक़्त ही सही,
तेरे साथ मेरा एक लम्हा गुजर गया,
मौत की कहानी लिखने में,
जिंदगी बशर हो गयी,
तू मिला भी नहीं इन यादों के बीच,
और ये शाम यूँ ही बेवजह,
सेहर हो गयी,
जब कभी जिंदगी के इस मोड़,
से, पलट के देखता हूँ,
तो नजर आता है, बस एक तेरा चेहरा,
थोडा धुंधला थोडा मुस्कराता,
मेरी जिंदगी को,
जीवन बनता,
नजर आ जाता है,
इन गर्द पड़ी यादों के पार,
और देख बदनसीबी,
इस कमबख्त तकदीर की,
तुझे ही,
ढूँढते ढूँढते अरसा गुजर गया.
||साकेत श्रीवास्तव||
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