Friday, May 24, 2013

इतना सुकून क्यों है

तेरी यादों में,
इतना सुकून क्यों है,
तेरे नाम पे,
मचलता लहू क्यों है,

तुझसे दूर जाने,
की चाहत थी दिल की,
फिर हर जर्रे रह गुजर के,
बसा तू क्यों है,

क्यों बर्बाद करना चाहता,
है ये दिल मुझे,
आखिर विरहा के हर मोड़ पे,
एक नया इम्तिहान क्यों है,

कभी तो मैंने तेरा हाथ,
नहीं थामा,
न कभी चला तेरे साथ,
जिंदगी की रह गुजर में,

फिर मेरी आत्मा,
खुद के शरीर से,
जुदा क्यों है,

महसूस तो पहले भी न था,
तुझे मेरे इश्क का,
फिर मुझे तेरे होने,
का एहसास क्यों है,

माथे की सिलवटों में,
दिल के हरकतों में,
मेरी हर बात में,
आखिर तेरा निशान क्यों है,

कुछ तो बता मुझे,
मेरी साँसे मुझसे जुदा क्यों है,

आखिर, तेरी यादों में,
इतना सुकून क्यों है.

||साकेत श्रीवास्तव||


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