Saturday, September 28, 2013

कुछ ऐसा जाम पिला साकी- १०

मत पूछ तेरी याद में, मैंने,
कितने आँसू बहाए है,
आँखों के लाल डोरे बता देंगे,
की ये रुकने का नाम कहाँ पाए है,

बस और न दिल में दर्द उठे,
न कोई जख्म अब जहर बने,

कुछ ऐसा जाम पिला साकी,
की कोई और तमन्ना बाकी न रहे,
सेहर होने तक रोऊ मैं आज,
की इन आँखों में आँसू कोई बाकी न रहे,

कुछ ऐसा तनहा सा हो जाऊ मैं आज,
की खुद को खुद की भनक न लगे,
लम्बा अरसा गुजर गया,
खुद की कब्र पे लिपटे हुए,

बस और ये रोने के बहाने न हो,
दिल में दर्द के थपेड़े न हो,

कुछ ऐसा जाम पिला साकी,
की कोई और तमन्ना बाकी न रहे,
बस तनहा मैं सो जाऊ,
और दिल में दर्द की सदा न रहे,


कुछ ऐसा जाम पिला साकी,
की कोई और तमन्ना बाकी न रहे,

||साकेत श्रीवास्तव||

Thursday, September 26, 2013

पीछे क्यों हटना

ग़र चाह यही है,
जो राह चुनी है,
तो डर से पीछे क्यों हटना,

ग़र हुंकार भरी है,
और ललकार करी है,
तो जंग से पीछे क्यों हटना,

आसमान तक शोर उठा दो,
मौत का सीना चीर दिखा दो,

ग़र मातृभूमि को छु ले कोई,
उसके घर में मौत जग दो,

मस्तक पे अक्षत टीका हो,
मन में पावन गीता हो,
मातृभूमि की रक्षा में,
सर-काल बने तुम मडराओ,



ग़र चाह यही है,
जो राह चुनी है,
तो डर से पीछे क्यों हटना.

~~साकेत श्रीवास्तव~~

Monday, September 16, 2013

यादें तेरे पास रहेंगी



बचपन के दिन भी बड़े हसीं थे,
जब सर्दियों के दिन में,
धुप की चादर ओढ़े पूरी,
दोपहर यूँ ही,
अनमने से गुजार देते थे.

दौड़े चले जाते थे गेंद की चाह में,
कभी इधर कभी उधर,
पंछी की मानिंद उड़ते फिरते थे,
नीले गगन में,
कभी इस गली कभी उस गली,

लगे रहते थे दोस्तों के जमघट,
नीली छतरी के नीचे,
हमारी छतों के ऊपर,
और गूंजती रहती थी,
हंसी की आवाजें,
हमेशा कानो में हमारे,

वो दिन शायद अब न आये,
शायद फिर वो जाड़े की दोपहर,
अब ना पाए,
शायद छतों पे दोस्तों के जमघट,
फिर कभी मयस्सर ना हो,

पर ये सुहानी यादें,
हमेशा साथ रहेंगी,

दिल को हमेशा,
रिझांति रहेंगी,
बताती रहेंगी,

की कितने भी तुम बढ़ जाओ,
कितने भी तुम आगे जाओ,

वक़्त जो गुजरा वही रहेगा,
बचपन तेरा वही रहेगा,
माँ का आँचल वही रहेगा,

अंत तक साथ तेरे वही रहेगी,
तेरी यादें तेरे पास रहेंगी..

||साकेत श्रीवास्तव||
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