Tuesday, June 25, 2013

कुछ जिन्दा सा

कुछ हैरान सा,
कुछ परेशान सा,
बीते लम्हों से कुछ,
जुदा सा,

तेरा नाम ढूढने,
का इल्म लिए,
मैं जिन्दा हूँ,
कुछ मरा सा,

पथराई आँखों में,
दर्द का सैलाब लिए,
ढूढता हूँ तुझे,
कुछ थका सा,

इल्म नहीं है शायद तुझको,
किस रंग के सपने देखे मैंने,

कभी तुझ संग सांस मैं लेता हूँ,
और कभी जिन्दा हूँ तुझसे जुदा सा,

एक बार झलक जो मिल जाए,
बेचैन दिल को सुकून आये,
तेरे इश्क में जागे रहते है,
तेरी याद में खोये रहते है,

बस एक बार अगर तू संग आये,
मेरा हाथ थाम के रुक जाए,

तो समझ सकू मैं बात भी ये,
की मैं भी हूँ कुछ जिन्दा सा...

कुछ हैरान सा,
कुछ परेशान सा,
बीते लम्हों से कुछ,
जुदा सा.

||साकेत श्रीवास्तव||

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