Thursday, July 25, 2013

बस अभी अभी एक ख़याल आ गया

बस अभी अभी एक ख़याल आ गया,
इन पंक्तियों के हाथों एक पैगाम आ गया,
सोचा था अब इनसे शायद कुछ हासिल न हो,
पर देखो रुकते रुकते एक नया मुकाम आ गया,


कुछ एक छुपे जज्बात थे दिल के,
आसुओं में डूबे दिनरात थे दिल के,
पर जरा कोशिश देखो इन शब्दों की,
इनके हाथों इस मर्ज का इलाज आ गया,


यूँ तो कई दफा मैं तनहा हुआ हूँ,
और कई दफे अंधेरों में रहा हूँ,
पर ये शायद इन शब्दों की रवानी थी,
जिनको संग ले मैं उजालों तक आ गया,


टूटा शायद हर बार दिल ही था मेरा,
शायद जज्बात तो बस दुखी से हो गए,
वरना कहाँ बन पाती ऐसी पंक्तियाँ मुझसे,
और कह पाती देखो,
तेरे शब्दों में कैसे जिंदगी और जान आ गया,

बस अभी अभी एक ख्याल आ गया.

||साकेत श्रीवास्तव||

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