Friday, July 26, 2013

और लाश जल उठी



और लाश जल उठी,
कल तक जो एक जिन्दा तस्वीर थी,
जिसके माथे भी एक तकदीर थी,
आज वो देह धू धू कर जल उठी,

कभी दादी कभी नानी,
कभी बच्चो की कोई कहानी,
कभी माँ का आँचल लिए हुए,
आज वो बोली मौत की जुबानी,

कभी जो पूरे खेतों तक,
यूँ ही घूम के आती थी,
अन्दर से जो थी कोमल,
पर बुढ़ापे की अलग कहानी थी,

जब तक देह में जान बसी थी,
रिश्ते नातों की न कोई कमी थी,
जिस दिन सैय्याँ पे लेटी वो,
बनी एक लाश की कहानी भर थी,

माँ का आँचल किसी के सर से,
दादी की बातें किसी के मन से,
और कहानी बच्चो की,
रह गयी लाश की रवानी भर थी,

कल तक हाथ पकड़ के जिसका,
गाँव गाँव हम घूमे थे,
आज पड़ी वो सर-सैय्याँ पे,
एक लाश की कहानी कहती है,

बस कुछ लकड़ियों और,
थोड़ी आग की कहानी भर है,
पूरी जिंदगी बस एक बेमानी भर है,

ना रोई ना वो कापी,
ना वो आग की तपिश से जागी,

जो कल तक जिन्दा थी,
वो लाश आज जल उठी...

||साकेत श्रीवास्तव||

Thursday, July 25, 2013

बस अभी अभी एक ख़याल आ गया

बस अभी अभी एक ख़याल आ गया,
इन पंक्तियों के हाथों एक पैगाम आ गया,
सोचा था अब इनसे शायद कुछ हासिल न हो,
पर देखो रुकते रुकते एक नया मुकाम आ गया,


कुछ एक छुपे जज्बात थे दिल के,
आसुओं में डूबे दिनरात थे दिल के,
पर जरा कोशिश देखो इन शब्दों की,
इनके हाथों इस मर्ज का इलाज आ गया,


यूँ तो कई दफा मैं तनहा हुआ हूँ,
और कई दफे अंधेरों में रहा हूँ,
पर ये शायद इन शब्दों की रवानी थी,
जिनको संग ले मैं उजालों तक आ गया,


टूटा शायद हर बार दिल ही था मेरा,
शायद जज्बात तो बस दुखी से हो गए,
वरना कहाँ बन पाती ऐसी पंक्तियाँ मुझसे,
और कह पाती देखो,
तेरे शब्दों में कैसे जिंदगी और जान आ गया,

बस अभी अभी एक ख्याल आ गया.

||साकेत श्रीवास्तव||

Monday, July 15, 2013

कुछ ऐसा जाम पिला साकी- ९

कभी मुझसे जुड़ के देखो,
संग मेरे जी के देखो,
हर रोज मरा हूँ इश्क में तेरे,
कभी मेरा टूटा दिल तो देखो,

ले चल मुझे इन वादों से दूर,
बिखरे पड़े इन रिश्ते नातों से दूर,

कुछ ऐसा जाम पिला साकी,
की कोई और तमन्ना बाकी न रहे,
दूर हो जाऊं सारी दुनिया से आज,
और संग कोई वादा न रहे,

कई बार रोया हूँ सारी रात मैं,
कभी मुझे यूँ  बिलखता तो देखो,

गर वादा ना निभाऊ तो बेवफाई है मेरी,
पर तेरी वफ़ा में कभी मुझे जलता तो देखो,

कुछ ऐसा जाम पिला साकी,
की कोई और तमन्ना बाकी न रहे,
दूर हो जाऊ सारे नातों से आज,
और किसी वफ़ा में जलता न जाऊ.

ले चल इन वादों से दूर.

||साकेत श्रीवास्तव||