#KahiJakhmHareNaHoJaye
कहीं जख्म हरे ना हो जाये,
दिल में उठते जज्बातों,
को रोक लेते हैं,
कभी आइना पड़ जाए सामने,
तो मुंह मोड़ लेते हैं,
पुरवा के मंद झोंकों में,
अब आँखें भींच लेते हैं,
और आ जाये जो तू कभी इन सपनो में,
तो वो सपने तोड़ देते हैं,
अब तो सांसें भी कुछ आराम से लेते हैं,
डरते हैं की,
कही जख्म हरे न हो जाये,
दूर बँसवारी के पार जब,
धुप ढल रही होती है,
और ढलती शाम के साथ,
तेरी यादें बढ़ रही होती है,
तब,
सूखे आँखों से ही रो लेते हैं,
डरते हैं की,
कही जख्म हरे न हो जायें,
बहुत लम्बा सफ़र तय कर आया हूँ,
ना जाने कितनी हार जीत संग लाया हूँ,
एक लम्बा अरसा जिंदगी का,
तेरी फिराक में गुजार आया हूँ,
अब तो कुछ कम ही जिंदगी,
जिया करते हैं,
डरते हैं की,
कही जख्म हरे न हो जाये,
चुभे इतने कांटें हैं,
इस चमन को सजाने में,
की अब फूलों से भी,
डर के रहते है,
अब तो अधकच्ची नींद,
ही सो लेते हैं,
डरते हैं की,
कही जख्म हरे न हो जाये...
||साकेत श्रीवास्तव||
(C) RIGHT RESERVED...
कहीं जख्म हरे ना हो जाये,
दिल में उठते जज्बातों,
को रोक लेते हैं,
कभी आइना पड़ जाए सामने,
तो मुंह मोड़ लेते हैं,
पुरवा के मंद झोंकों में,
अब आँखें भींच लेते हैं,
और आ जाये जो तू कभी इन सपनो में,
तो वो सपने तोड़ देते हैं,
अब तो सांसें भी कुछ आराम से लेते हैं,
डरते हैं की,
कही जख्म हरे न हो जाये,
दूर बँसवारी के पार जब,
धुप ढल रही होती है,
और ढलती शाम के साथ,
तेरी यादें बढ़ रही होती है,
तब,
सूखे आँखों से ही रो लेते हैं,
डरते हैं की,
कही जख्म हरे न हो जायें,
बहुत लम्बा सफ़र तय कर आया हूँ,
ना जाने कितनी हार जीत संग लाया हूँ,
एक लम्बा अरसा जिंदगी का,
तेरी फिराक में गुजार आया हूँ,
अब तो कुछ कम ही जिंदगी,
जिया करते हैं,
डरते हैं की,
कही जख्म हरे न हो जाये,
चुभे इतने कांटें हैं,
इस चमन को सजाने में,
की अब फूलों से भी,
डर के रहते है,
अब तो अधकच्ची नींद,
ही सो लेते हैं,
डरते हैं की,
कही जख्म हरे न हो जाये...
||साकेत श्रीवास्तव||
(C) RIGHT RESERVED...
No comments:
Post a Comment