Wednesday, July 23, 2014

मैं एक लड़की हूँ



I am writing this poem as a tribute to all women...and a message to society that we exist because there is a women who is our Mother or sister or wife or daughter....respect them love them but don't hurt them....

मैं एक लड़की हूँ,

हां वही लड़की
जिसे तुम बहना बुलाते हो,
तो कभी बेटी बुलाते हो
कभी माँ बुलाते हो,
तो कभी बीवी बुलाते हो,

और जब झुर्रिय पड़ जाती है मेरे,
इस चेहरे पे,
तो जिसको तुम किस्सों वाली दादी बुलाते हो,

मैं एक लड़की हूँ,

हां वही लड़की,
जिसके हाथो राखी बंधवा कर,
उसकी रक्षा का जिम्मा उठाते हो,
जिसके माथे सिन्दूर सजा के,
अपनी दुल्हन बनाते हो,

मैं एक लड़की हूँ,

हां वही लड़की जिसके हाथों की खीर को,
तरस उठते हो जब तुम उसे माँ बुलाते हो,
जिसे हर बार हर साल नव दुर्गा,
पे तिलक लगते हो

और मैं वही लड़की हूँ,
जिसे तुम कोख में मार देते हो,
या रस्ते पे काट देते हो,
और बन जाते हो नरभक्षी जानवर,

क्या बदल जाता है मुझमें,
जब तुम देख लेते हो किसी,
बियेबान में मुझको अकेला,
क्यों भूल जाते हो मेरे हाथों की खीर,
और राखी की वो सीख,

क्या इसी वक़्त के लिए,
मैं तुम्हे राखी बांधती हूँ,
और तुम्हारे नाम का सिन्दूर,
लगा के तुम्हारे साथ आती हूँ,

क्या बस इतना अपराध रह,
जाता है मेरा,
की मैं एक लड़की हूँ,

बस,
और तुम्हे हक मिल जाता है,
की तुम मुझे नोचो मारो,
मेरी आबरू नीलाम कर दो,

मैं तो सीता हूँ,
मैं सती हूँ
काली हूँ और दुर्गा हूँ,
जब पाप हद पार कर लेंगे तुम्हारे,
तो धरती माँ की गोद में,
छुप जाउंगी तुम्हारे इस कठोर,
संसार से बच जाउंगी,

पर एक बार मैं छुप गयी,
तो तुम कहाँ से लाओगे मेरे हाथों की खीर,
मेरी मीठी आवाज में तुम्हारा नाम,
और कहाँ से लाओगे अपने जैसा,
एक नया शैतान...

हां मैं वही लड़की हूँ....

~~साकेत श्रीवास्तव~~
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